Thursday, April 12, 2012

मैथिली-१

 ये कुछ प्रश्न यू ही किसी के मन में उपजे हैं.
(अगले भाग में इन प्रश्नों के उत्तर मैथिली के मुख  से ही मिलेंगे.)

मैथिली-१ 
मैथिली-ओ-मैथिली! है क्यों विपिन जाना तुझे 
जानकी क्या दोष तेरा, जो विपिन जाना तुझे||

तृण बने जो तेरी सैय्या, फिर पलंग किस काम के
गर गुफा डेरा तुम्हारा, फिर भवन किस काम के
छोड़ छप्पन भोग-व्यंजन, कंद क्यों खाना तुझे
मैथिली-ओ-मैथिली! है क्यों विपिन जाना तुझे||१||

वाम-भागी राम की तू कुलवधू रघु-वंश की
धर्म-रत, पुत्री धरा की औ सुता मिथि-वंश की
तू है "आदि" फिर विशेषण कौन सा पाना तुझे
मैथिली-ओ-मैथिली! है क्यों विपिन जाना तुझे||२||

राम तो जाते हैं वन को, है हुकुम अवधेश की
"वन-गमन कर सुर-विजय हो"  विनती है देवेश की.
उर्मिला-लछमन पृथक, फिर संग क्यों आना तुझे
मैथिली-ओ-मैथिली! है क्यों विपिन जाना तुझे||३||

तू भी जाने है! प्रजा का तुझपे होगा रोष भी 
जांच मांगेगे तुझी से देंगे तुझको दोष भी
"बात ना मानी पिया की" देंगे ये ताना तुझे
मैथिली-ओ-मैथिली! है क्यों विपिन जाना तुझे||४||

  मैथिली-ओ-मैथिली! है क्यों विपिन जाना तुझे  
जानकी क्या दोष तेरा, जो विपिन जाना तुझे||
-- राजेश "नचिकेता"